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ऐसी फसी उसकी डोर की तड़प कर रह गई by Chandan Singh

ऐसी फसी उसकी डोर की तड़प कर रह गई
तारो से जो उलझी तो उलझ कर रह गई
हवाएं चाहती थीं ले जाना साथ उसे
पर उलझनों से घिरी वो सिसक कर रह गई
ऐसी फसी उसकी डोर की तड़प कर रह गई।
यूं तो उसकी कोई मंज़िल न थी
उड़ती थी अकेली पर बेबस जिंदगी न थी
मिली जब अपने जैसे ही किसी से
तो उसकी फिर आज़ाद न जिंदगी रह गई।
ऐसी फसी उसकी डोर की तड़प कर रह गई।
भरोसा टूट गया डोर जब कटी
आसमानों पर थिरकने वाली ज़मीं की ओर चली
हवाओं ने सहारा दिया पर बात अब अलग थी
जिस डोर से जुड़ी थी वो डोर कट चुकी थी
लड़खड़ाती हुई अब बेसुध सी रह गई
ऐसी फसी उसकी डोर की तड़प कर रह गई।
तारो से जो उलझी तो उलझ कर रह गई।

Penned by
Chandan Singh
New Seelampur, Delhi

 

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