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ग़ज़ल by Sachin Kumar Ken

ख्वाबों को रख सिरहाने सो जाते हैं
चलो नींद के इन्तजार में सो जाते हैं

एक तस्वीर जगाती रहती है रात भर
हारे थके हम आँख मूँदके सो जाते है

कोई पूछने न लगे सबब गुमशुदगी का
दरवाजे खिड़कियाँ बन्द कर सो जाते हैं

महलों में भी नींद आती नही किसी को
लोग आसमाँ को छत समझ सो जाते हैं

मखमली कम्बलों का कारीगर है वो
बच्चे फ़टी चादर ओढ़कर सो जाते है

आयेगें ख्वाब में फ़रिश्ते रोटियाँ लेकर
बच्चे यतीम इसी उम्मीद में सो जाते है

लोरियों का दौर रहा नही अब शायद
बच्चे कानो में इयरफोन लगाये सो जाते है

लगाकर आग मुफ़लिसों की बस्ती में
कैसे सुकून से वो अपने घरों में सो जाते है

Penned by,
Sachin Kumar Ken
Modinagar Road, Hapur, India

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