मेरा अस्तित्व उससे है, एक अटूट डोर से बंधी हु,
ये रिश्ता यशोदा कृष्ण जितना खास है।
ये सारा जग उसे मा कहता है जो कभी रूठती नही,
निःस्वार्थ प्रेम बस उसी के पास है।।
गंगा जितनी पावन है वो, उसी में काशी मथुरा का वास है,
ये हम सब मानते है कि निःस्वार्थ प्रेम बस उसी के पास है।।
ये सारा जग उसे मा कहता है जो कभी रूठती नही,
निःस्वार्थ प्रेम बस उसी के पास है।।
गंगा जितनी पावन है वो, उसी में काशी मथुरा का वास है,
ये हम सब मानते है कि निःस्वार्थ प्रेम बस उसी के पास है।।
आंसू छिपाने की कला है उनमें
त्याग और बलिदान का अनूठा रूप है
ये सारा जग जिसे पिता कहता है,
असल मे वही फरिश्ते का स्वरूप है।।
मेरी हर ज़िद पूरी करना, मेरे शौक का बोझ उठाना,
ये प्यार जग में सबसे अनूप है।।
त्याग और बलिदान का अनूठा रूप है
ये सारा जग जिसे पिता कहता है,
असल मे वही फरिश्ते का स्वरूप है।।
मेरी हर ज़िद पूरी करना, मेरे शौक का बोझ उठाना,
ये प्यार जग में सबसे अनूप है।।
मोहल्ले में हर गुंडा डरता उससे,
गलत रास्तो से हमेशा मुझे बचाया है
उसकी वजह से कितना भी डाँट खाऊ गम नही होता
जो मंगा वो दिया उसने ..एक भाई है जिसका प्यार कम नही होता।।
क्रिकेट में हराया है उसे और उसकी बाइक भी दौड़ाई है,
इन सब बातों का मुझे बड़ा अभिमान है
बड़ा हुआ तो समझ आया कि भाई तो पिता के साये के समान है।।
गलत रास्तो से हमेशा मुझे बचाया है
उसकी वजह से कितना भी डाँट खाऊ गम नही होता
जो मंगा वो दिया उसने ..एक भाई है जिसका प्यार कम नही होता।।
क्रिकेट में हराया है उसे और उसकी बाइक भी दौड़ाई है,
इन सब बातों का मुझे बड़ा अभिमान है
बड़ा हुआ तो समझ आया कि भाई तो पिता के साये के समान है।।
वो छोटी हो या बड़ी ,बेमतलब लड़ाई बहस होना जरूरी है,
वो दोस्त भी है और हमराज़ भी ,उसको मनाना तो मजबूरी है
उसकी थाली में हाथ मरना और उसके कपड़े पहनना,
इन पलो के बिना ज़िन्दगी अधूरी है,
जिनकी बहन नही होती उनसे पूछो की उनके
और उनकी खुशियो के बीच कितनी दूरी है।।
वो दोस्त भी है और हमराज़ भी ,उसको मनाना तो मजबूरी है
उसकी थाली में हाथ मरना और उसके कपड़े पहनना,
इन पलो के बिना ज़िन्दगी अधूरी है,
जिनकी बहन नही होती उनसे पूछो की उनके
और उनकी खुशियो के बीच कितनी दूरी है।।
उन्होंने बरसो का तजुर्बा चंद लम्हो में मढ़ा है
रामायण और गीता का ज्ञान मैंने कहानियों के रूप में पढ़ा है
घर की नींव को अच्छे संस्कारो से गड़ा है
दादा दादी के साथ वो दौर भी जिया है मैंने जहा आशीर्वाद हर पूंजी से बड़ा है।।
रामायण और गीता का ज्ञान मैंने कहानियों के रूप में पढ़ा है
घर की नींव को अच्छे संस्कारो से गड़ा है
दादा दादी के साथ वो दौर भी जिया है मैंने जहा आशीर्वाद हर पूंजी से बड़ा है।।
मेरी खुशियो में सब शरीक हो गए
सबका प्यार मेरे लिए बेशुमार था
जेब जब खाली हुई तब पता चला कौन असली यार था,
जब टूट कर रोया तो मुसीबतो में सब साथ छोड़ गए
पीछे मुड़ा तो देखा मा बाप भाई बहन के रूप में बस खड़ा मेरा परिवार था।।
सबका प्यार मेरे लिए बेशुमार था
जेब जब खाली हुई तब पता चला कौन असली यार था,
जब टूट कर रोया तो मुसीबतो में सब साथ छोड़ गए
पीछे मुड़ा तो देखा मा बाप भाई बहन के रूप में बस खड़ा मेरा परिवार था।।
Penned by,
Mausmi Bishnu
Nowrozabad, India
Mausmi Bishnu
Nowrozabad, India
Thank you blossom of poetry.
ReplyDeleteSimply Awesome
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