Skip to main content

हाल - ए - दिल by Ankit Dubey

हाल- ए- दिल बयान मैं सरेआम करता हूं,
अपनी कविता के हर अल्फ़ाज़ तुम्हारे नाम करता हूं।
जो तुम हो तो लगता है पूरी दुनियां जीत जाऊंगा ,
तुम बिन ये ज़िन्दगी चंद टुकड़ों पर नीलाम करता हूं।।

हाल - ए - दिल बयान मैं सरेआम करता हूं....

तुम्हारा होना जैसे एक सहारे सा होता है,
तुम कुदरत का कोई फरिश्ता हो, इस बात के इशारे से लगता है।
तुम्हारे साथ होता हूं तो ज़िन्दगी के हर ग़म भूल जाता हूं,
तुम्हारे आंखों के समंदर पर चलते किनारे सा होता हूं।।

हाल - ए - दिल बयान मैं सरेआम करता हूं...

मुझको मालूम है इस गुस्ताख़ी का अंजाम क्या होगा,
जिसने हार दिया सब कुछ वो अब गुमनाम क्या होगा।
टूट के कोई फूल गिरा है मेरी टहनियों से ,
जो पतझड़ में हुआ बेज़ार वो अब गुलज़ार क्या होगा।।

हाल - ए - दिल बयान मैं सरेआम करता है,
अपनी कविता के हर अल्फ़ाज़ तुम्हारे नाम करता हूं..

Penned by
Ankit Dubey
Faridabad, Haryana, India

 

Comments

Popular posts from this blog

बेजुबां इश्क़ by Ayushi Tyagi

लड़ते भी हो इतना और प्यार भी हद पार करते हो लफ़्ज़ों से नहीं तुम आंखों से सब बात कह देते हो रास्ते में मुझे हमेशा खुद से आगे रखते हो भीड़ में मेरा हाथ कसके पकड़ लेते हो मेरे ख्वाबों को पंख भी देते हो उजाले में छुपा अंधेरा भी दिखाते हो मेरे चेहरे की रौनक तुम्हारी हिम्मत है और मेरी नादानियाँ तुम्हारे लिए कमजोरी मेरी आँखें पढ़ने का हुनर कहाँ से सीखा है तुमने? मेरी आवाज़ से दर्द जानने का तरीका कैसे समझा तुमने? मेरे कदमों से मेरे सपने को किस तरह परखा तुमने? मेरे दिल की धड़कनों को कब सुना तुमने ? हाँ, यह सवालों के जवाब जानना जरूरी है मेरे लिए की सच है या कोई फ़साना तो नहीं मेरे लिए हो सके तो सपनों में नहीं हक़ीक़त में आना इस बेजुबां इश्क़ की किताब का नाम पूछना है तुमसे जो मेरे हर एक राज जानती है। Penned by Ayushi Tyagi Ghaziabad, UP, India  

Sarhad by Mandvi Mishra

रूह का बंधन by Mohit Sah

तू जाग रहा रातों को अक्सर, माना प्रेम को पाना था पर क्या पूछा तुने है खुद से, क्या तू प्रेम दिवाना था? हाँ मान लिया जज्बात तेरे थे प्रेम प्रतिज्ञा में डूबे, पर क्या उन जज्बातों की नींव, सच्चाई का ज़माना था? खुश है ना तु मान गई वो, तुझको अपनाने को कर तैयारी देर नही अब, तुझको उसे भूलने को बस कुछ दिन इस प्रेम की अग्नि तुझको खूब जलाएगी फिर यूं हवस के शक्ल में प्रेम, खुद से ही रूठ जाएगी ना जाने संसार में कान्हा तेरा क्यों अवतरण हुआ? प्रेम सिखाने आया था न, लगता है न विफल हुआ जब रुह ने बंधन तोड़ दिया तब दो जिस्मों का मिलन हुआ एक रूह तो बाकी थी न उसमें जिसने उस फूल का सृजन किया जब रूह ने बंधन तोड़ दिया तब दो जिस्मों का मिलन हुआ हार गई है प्रेम तुम्हारी, तेरे हवस के चक्कर में टूट रहा है हर वह प्रेमी, तेरे छल के शक्कर में पर मानो छल तो बस अब, तेरे फितरत का हिस्सा है प्रेम बेचता गली - गली तु, अथक पुराना किस्सा है अब भी क्या अंतरमन तेरा, तुझको सही बताता है? प्रेम पुजारी प्रेम बेचता, शर्म ना तुझको आता है ना जाने क्यों, अब भी तुझको ना भूल अपना स्मरण हुआ जब रुह ने बंधन तोड़ दिया...