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हाल - ए - दिल by Ankit Dubey

हाल- ए- दिल बयान मैं सरेआम करता हूं,
अपनी कविता के हर अल्फ़ाज़ तुम्हारे नाम करता हूं।
जो तुम हो तो लगता है पूरी दुनियां जीत जाऊंगा ,
तुम बिन ये ज़िन्दगी चंद टुकड़ों पर नीलाम करता हूं।।

हाल - ए - दिल बयान मैं सरेआम करता हूं....

तुम्हारा होना जैसे एक सहारे सा होता है,
तुम कुदरत का कोई फरिश्ता हो, इस बात के इशारे से लगता है।
तुम्हारे साथ होता हूं तो ज़िन्दगी के हर ग़म भूल जाता हूं,
तुम्हारे आंखों के समंदर पर चलते किनारे सा होता हूं।।

हाल - ए - दिल बयान मैं सरेआम करता हूं...

मुझको मालूम है इस गुस्ताख़ी का अंजाम क्या होगा,
जिसने हार दिया सब कुछ वो अब गुमनाम क्या होगा।
टूट के कोई फूल गिरा है मेरी टहनियों से ,
जो पतझड़ में हुआ बेज़ार वो अब गुलज़ार क्या होगा।।

हाल - ए - दिल बयान मैं सरेआम करता है,
अपनी कविता के हर अल्फ़ाज़ तुम्हारे नाम करता हूं..

Penned by
Ankit Dubey
Faridabad, Haryana, India

 

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